भा.भू.सं. के क्षेत्रीय केंद्र विषुवतीय भूभौतिकीय अनुसंधान प्रयोगशाला (ईजीआरएल) ने 1991 में अपनी गतिविधियां शुरू कीं, जब कम अवधि के भूचुंबकीय क्षेत्र के उच्चावचन मापने के लिए तिरुनलवेली-तिरुचेंदुर राजमार्ग पर तिरुनलवेली से 11 किमी दूर स्थित एक गाँव कृष्णापुरम में किराए के मकान में कुछ समय के लिए एक प्रयोग किया गया था। कृष्णापुरम गाँव के पास 35 एकड़ से अधिक क्षेत्र में चुंबकीय विषुवत (नति कोण 1.75oN) (8.7oN, 77.8oE भौगोलिक) के समीप स्थित, इस केंद्र में निकट-पृथ्वी के पर्यावरण में उत्पन्न होने वाले विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र मापनों के बहु-विषयक प्रयोग किए जाने थे।
संबंधित रुचि के विषयों में अन्य के साथ-साथ लगभग 25 प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिकाओं द्वारा संपूरित भूचुंबकत्व, वायुमंडलीय विज्ञान और आयनमंडलीय एवं चुंबकमंडलीय भौतिकी पर जर्नलों की एक विस्तृत श्रृंखला (वर्तमान में लगभग 500 की संख्या) के साथ एक आधुनिक पुस्तकालय इस केंद्र में स्थित है, जिसके साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्यक्रमों के लिए आवश्यक उपकरणों के निर्माण और रखरखाव के लिए एक अच्छी तरह से सुसज्जित इलेक्ट्रॉनिक्स प्रयोगशाला भी है।
तिरुनलवेली के मनोमणियम सुंदरनार विश्वविद्यालय (MSU) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिससे केंद्र और विश्वविद्यालय के व्याख्याताओं और छात्रों और उनके संबद्ध महाविद्यालयों के बीच पारस्परिक हित के कई बहु-विषयी क्षेत्रों के बीच विचार-विमर्श हो पाता है। MSU ने संस्थान को भौतिकी में अनुसंधान के लिए एक केंद्र के रूप में मान्यता दी है, जो पीएच.डी. डिग्री में परिणत होता है।
ईजीआरएल के मुख्य कार्यों में से एक भूचुंबकीय डेटा के निरंतर अभिलेख प्राप्त करना है - पृथ्वी के समग्र भूचुंबकीय क्षेत्र (क्षैतिज (H) और ऊर्ध्वाधर (Z) और दिक्पात (D)) घटकों में परिवर्तन चुंबकीय उपकरणों की सहायता से दर्ज किए गए हैं, जिन्हें वैरोमीटर कहा जाता है। इन्हें दिक्पात नति चुंबकत्वमापी (DIM) और प्रोटॉन अग्रगमन चुंबकत्वमापी (PPM) के साथ किए गए निरपेक्ष क्षेत्र के घटकों के नियमित प्रेक्षणों से संपूरित किया जाता है। प्रोसेसिंग के बाद, ये डेटा समय-समय पर नवी मुंबई में मुख्यालय को भेजे जाते हैं। ईजीआरएल में एक पृथक डिजिटल फ्लक्सगेट चुंबकत्वमापी भी सक्रिय है जो डिजिटल रूप में उच्च वियोजन के डेटा प्रदान करता है। मानक चुंबकीय वेधशाला और एक मध्यम आवृत्ति रडार उच्चतर मध्यमंडलीय गतिकी मापदंडों पर डेटा प्रदान करने में सहायता करने वाला यह केंद्र दुनिया में बहुत कम स्थानों में से एक है, जो ~3o के संकीर्ण अक्षांशीय बेल्ट में ~110 किमी चुंबकीय विषुवत के चारों ओर केंद्रित आयनमंडल में प्रवाहित एक प्रवर्धित पूर्व-पश्चिमगामी धारा प्रणाली के रूप में ज्ञात ‘विषुवतीय इलेक्ट्रोजेट’ के अध्ययन के लिए उपयुक्त है।
मध्य वायुमंडलीय गतिकी, और्जिकी और अन्य क्षेत्रों से इनका युग्मन
मध्य वायुमंडल (15-100 किमी) निचले वायुमंडल, मौसम के संस्तर, जलवायु और वर्षा तथा आयनित उच्चतर वायुमंडल के बीच अवस्थित है, जहां सौर विकिरण और सौर पवन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जाता है। यह क्षेत्र दबाव, घनत्व और तापमान में विक्षोभों को नियंत्रित करता है और तरंगों के प्रसार में सहायता करता है।
उष्णकटिबंधीय वायुमंडल सौर विकिरण से प्रभावित होता है, जो बड़े पैमाने पर परिसंचरण और मेघपुंज संवहन, दोनों को उद्वेलित करता है। कोरिओलिस बल उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में अपेक्षाकृत छोटा है और यह कुछ लंबी अवधि के तरंग स्वरूपों में सहायता करता है। चूंकि गैस घनत्व तेजी से ऊंचाई के साथ घटता है, तो वायुमंडलीय तरंगें आयाम में ऊपर की ओर बढ़ती हैं और ऊपरी मध्य वायुमंडल (80-100 किमी) की गति और ऊर्जा संतुलन के लिए ये महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। बाद के क्षेत्र में, पृथ्वी पर कहीं भी पाया गया तापमान अपने न्यूनतम मूल्य (गर्मियों में ध्रुवीय क्षेत्रों में 120K तक) तक पहुँच जाता है। इस क्षेत्र की अनुक्रिया को नियंत्रित करने में विकिरणकारी, रासायनिक और गतिशील प्रक्रियाएं अलग-अलग भूमिका निभाती हैं। इन प्रक्रियाओं को अब भी पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। माना जाता है कि इस क्षेत्र की परिवर्तनशीलता को निर्धारित करने में ग्रहीय स्तर की तरंगों और ज्वार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन अतीत में निरंतर प्रेक्षणों के अभाव में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उनके प्रसार की विशेषताओं और निम्न और मध्य वायुमंडलीय उत्पत्ति के ज्ञात स्रोत तंत्र के संबंध में विस्तार से खोज नहीं की जा सकी है ।
ईजीआरएल में, एक उच्च शक्ति की मध्यम आवृत्ति (MF) रडार प्रणाली 1992 में इंडो-ऑस्ट्रेलियाई साझा परियोजना के तहत स्थापित की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य 70-100 किमी ऊंचाई वाले क्षेत्र में निष्क्रिय पवनों के निरंतर मापन प्राप्त करना है। इसी तरह की रडार प्रणाली बाद में भा.भू.सं. के एक अन्य फील्ड स्टेशन, कोल्हापुर में भी स्थापित की गर्इ। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, इस तरह के केवल कुछ रडार ही दुनिया में सक्रिय हैं।
तिरुनलवेली पर मापित पवन क्षेत्र कई समय मानों (कुछ वर्षों से कुछ घंटों तक) में परिवर्तनशीलता दिखाते हैं। प्रेक्षित पवन परिवर्तनशीलता के कारण के रूप में बड़े स्तर के परिसंचरण और तरंग प्रक्रियाओं की भूमिका के अध्ययन पर र्इजीआरएल में प्राथमिक रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है। कुछ दिनों से कर्इ दिनों तक चलने वाली कई तरंग घटनाओं को 100 किमी तक के क्षेत्रों पर निम्न वायुमंडलीय तरंग आवेश प्रक्रियाओं का प्रभाव प्रकट होते हुए देखा गया है। तिरुनलवेली में स्थापित सर्वाकाशीय वायुदीप्ति इमेजर। यह केंद्र PSMOS और CAWSES, SCOSTEP के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के तहत वैश्विक प्रयोगात्मक अभियानों में भाग ले रहा है, जिसमें तिरुनलवेली में MF रडार को दुनिया भर में MLT रडार नेटवर्क का एक हिस्सा बनाया गया है। ईजीआरएल में संस्थान के वैज्ञानिकों ने CAWSES-India कार्यक्रम के तहत एक नये समन्वित प्रायोगिक अभियान में भाग लिया, जिसमें पहली बार मध्य वायुमंडलीय ज्वार को परिमार्जित करने के लिए कई प्रकार के प्रेक्षण उपकरणों का उपयोग किया गया। यह अपेक्षित है कि इस तरह के और अधिक अध्ययनों से प्राप्त उपयोगी जानकारी से यह समझा जा सकेगा कि तरंगों और ज्वार के कौनसे वर्णक्रम ऊपर की ओर प्रसारित होते हैं और ऊपरी वायुमंडलीय मौसम को उद्वेलित करते हैं।
2007 के प्रारंभ में ईजीआरएल में एक नया सर्वाकाशीय वायुदीप्ति इमेजर स्थापित किया गया और इसका उपयोग मुख्य रूप से मध्यसीमा क्षेत्र में ऊंचाई पर उत्सर्जित होने वाली वायुदीप्ति में प्रमुख छोटे स्तर की तरंग गतियों की निगरानी के लिए किया जाता है। OH कंपन-घूर्णन बैंड की चयनित लाइनों की निगरानी के लिए एक बहु-तरंग दैर्ध्य फोटोमीटर ~87 किमी पर संपूरक घूर्णनकारी तापमान मापन प्रदान करता है। इस तरह के मापन, उच्च वियोजन वाले वर्णक्रममापी द्वारा सहायता प्राप्त, आंतरिक रासायनिक प्रक्रियाओं को समझने और वायुदीप्ति तीव्रता में गतिशील विक्षोभ का साक्ष्य प्रदान करते हैं। ईजीआरएल में प्रकाशीय वायुविकी प्रयोगशाला की शुरुआत से, यह केंद्र दुनिया के बहुत ही विरले केंद्रों में से एक बन गया है जहां उच्चतर मध्य वायुमंडल की छानबीन में रेडियो और प्रकाशीय दूर संवेदन के संयुक्त प्रयासों का भरपूर उपयोग किया जाता है।
आयनमंडलीय घटना – विषुवतीय इलेक्ट्रोजेट और आयनमंडलीय अनियमितता के अध्ययन
विषुवतीय आयनमंडल का एक अद्वितीय भूचुंबकीय क्षेत्र विन्यास है जो अन्य अक्षांशों से अलग है। चुंबकीय विषुवत पर, एक स्वतंत्र रूप से निलंबित चुंबक किसी क्षैतिज मैदान में उत्तर-दक्षिण दिशा में अवस्थित रहेगा, जो यह दर्शाता है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र वहां पर क्षैतिज ही है। चुंबकीय विषुवत पर भूचुंबकीय क्षेत्र का विन्यास एक प्रवर्धित विद्युत चालकता को सक्रिय करता है जो लगभग 110 किमी की दूरी पर एक उन्नत विद्युत प्रवाह प्रणाली की ओर अग्रसर होती है जिसे परंपरागत रूप से विषुवतीय इलेक्ट्रोजेट (EEJ ) कहा जाता है। EEJ का अध्ययन इसकी प्रेक्षित परिवर्तनशीलता के संदर्भ में जटिल है, जहां कतिपय दिनों में दोपहर के घंटों में इसका चरम प्रकटन धारा प्रणाली का उत्क्रमण दर्शाता है। यह परिवर्तनशीलता पवन क्षेत्र की चर प्रकृति के कारण होती है जो डायनेमो क्रिया द्वारा संचालित प्रमुख विद्युतस्थैतिक क्षेत्र के लिए उत्तरदायी होती है। डायनेमो क्षेत्र (90-120 किमी) में पवनों की जानकारी की कमी के चलते इस परिवर्तनशीलता के कारणों को समझने में जो कठिनाइयाँ आ रही हैं।
तिरुनलवेली और कोल्हापुर में MF रडार डायनेमो क्षेत्र के निकट पवन क्षेत्रों पर उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। इन दोनों रडार से निरंतर डेटा प्राप्त होने के साथ, EEJ के अस्तित्व और अनुरक्षण से संबंधित कई समस्याओं को निपटाया जा रहा है और भूमंडलीय Sq धारा प्रणाली के साथ इसके संबंध को उजागर किया जा रहा है। EEJ की परिवर्तनशीलता के लिए उत्तरदायी मूलभूत प्रक्रियाओं को समझाने के लिए घरेलू रूप से उपयुक्त सैद्धांतिक प्रतिरूप विकसित करने का प्रस्ताव है। 2006 के मध्य में ईजीआरएल, तिरुनलवेली में एक डिजिटल आयनोसॉन्ड स्थापित किया गया था और तब से कई E और F क्षेत्र के आयनमंडलीय मापदंडों पर यह उपयोगी डेटा प्रदान कर रहा है।